कॉलेज में हड़ताल होने की वजह से मैं बोर हो कर ही अपने घर को कानपुर चल पड़ा। हड़ताल के कारण कई दिनो से मेरा मन होस्टल में नहीं लग रहा था। मुझे माँ की बहुत याद आने लगी थी। वो कानपुर में अकेली ही रहती थी और एक बैंक में काम करती थी। मैं माँ को आश्चर्यचकित कर देने के लिये बिना बताये ही वहां पहुँचना चाहता था।
शाम ढल चुकी थी। गाड़ी कानपुर रेलवे स्टेशन पर आ गई थी। मैंने बाहर आ कर जल्दी से एक रिक्शा किया और घर की तरफ़ बढ़ चला।
घर पहुँचते ही मैंने देखा कि घर के अहाते में मोटर साईकिल खड़ी हुई थी। मैंने अपना बैग वही वराण्डे में रखा और धीरे से दरवाजा को धक्का दे दिया। दरवाजा बिना किसी आवाज के खुल गया। मैंने अपना बैग उठाया और अन्दर आ गया। अन्दर मम्मी और एक अंकल के बातें करने की और खिलखिला कर हंसने की आवाज आई। बेडरूम अन्दर से बन्द था। घर में कोई नहीं था इसलिये अन्दर की खिड़की आधी खुली हुई थी क्योंकि इस समय हमारे घर कोई भी नहीं आता जाता था। बाहर अन्धेरा छा चुका था। मैं जैसे ही रसोई की तरफ़ बढा कि मेरी नजर अचानक ही खिड़की की तरफ़ घूम गई।
मेरी आँखें खुली की खुली रह गई। अंकल मेरी माँ के साथ बद्तमीजी कर रहे थे और माँ आनन्द से खिलखिला कर हंस रही थी। वो विनोद अंकल ही थे, जो मम्मी के शरीर को सहला सहला कर मस्ती कर रहे थे। मेरी माँ भी जवान थी। मात्र 38-39 वर्ष की थी वो। अंकल कभी तो मम्मी की कमर में गुदगुदी करते तो कभी उनके चूतड़ों पर चुटकियाँ भर रहे थे। मेरे पैर जैसे जड़वत से हो गये थे। मेरे शरीर पर चीटियाँ जैसी रेंगने का आभास होने लगा था।
अचानक विनोद अंकल ने मम्मी की कमर दबा कर उन्हें अपने से चिपका लिया और उनका चेहरा मम्मी के चेहरे की तरफ़ बढने लगा।
मैंने मन ही मन में उन्हें गालियाँ दी- साले भेन के लौड़े, तेरी तो माँ चोद दूंगा मै, माँ को हाथ लगाता है?
पर तभी मेरे होश उड़ गये, मम्मी ने तो गजब ही कर डाला। अंकल का लण्ड पैंट से निकाल कर उसे ऊपर-नीचे करने लगी।
मैं तो यह सब देख कर पानी-पानी हो गया। मेरा सर शर्म से झुक गया।
तो मम्मी ही ऐसा करने लगी थी फिर इसमें अंकल का क्या दोष?
मैं खिड़की के थोड़ा और नजदीक आ गया। अब सब कुछ साफ़ साफ़ दिखने लगा था। उनकी वासना से भरपूर वार्ता भी स्पष्ट सुनाई दे रही थी।
"आज लण्ड कैसे खाओगी श्वेता?" वो मम्मी को खड़ी करके उनके कसे हुए गाण्ड के गोले दबा रहा था।
माँ सिसक उठी थी- पहले अपना गोरा गोरा मस्त लण्ड तो चूसने दो ... साला कैसा मस्त है !
"तो उतार दो मेरी पैंट और निकाल लो बाहर अपना प्यारा लौड़ा !
मम्मी ने अंकल को खड़ा करके उनकी पैंट का बटन खोलने लगी। ऊपर से वो लण्ड के उभार को भी दबाती जा रही थी। फिर जिप खोल दी और पैंट उतारने लगी। अंकल ने भी इस कार्य में मम्मी की सहायता की।
अब अंकल एक वी-शेप की कसी अन्डरवीयर में खड़े थे। उनका लण्ड का स्पष्ट मोटा सा उभार दिखाई दे रहा था। मम्मी बार बार उसके लण्ड को ऊपर से ही दबाती जा रही थी और उनके कसे अण्डरवीयर को नीचे सरकाने की कोशिश कर रही थी।
फिर वो पूरे नंगे हो गये थे। मैंने तो एक बार नजरें घुमा ली थी पर फिर उन्हें यह सब करते देखने इच्छा मन में बलवती हो उठी थी। फिर मुझे मेरी गलती का आभास हुआ। पापा तो कनाडा जा चुके थे। मम्मी की शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति अब कैसे होती। कोई तो प्यास बुझाने वाला होना चाहिए ना। वो भी तो आखिर एक इन्सान ही हैं। फिर यह तो एक बिल्कुल व्यक्तिगत मामला था, मुझे इसमें बुरा नहीं मानना चाहिए।
मेरे बदन में भी अब एक वासना की लहर उठने लगी थी। अंकल का लण्ड खासा मोटा और लम्बा था। मम्मी ने उसे दबाया और उसे लम्बाई में दूध दुहने जैसा करने लगी।
अंकल बोल ही उठे- ऐसे दुहोगी तो दूध निकल ही आयेगा।
माँ जोर से हंस पड़ी।
"मस्त लण्ड का जायका तो लेना ही पड़ता है ना... अरे वो राजेश जी अब तक क्या कर रहे हैं...?"
"मैं हाजिर हूँ श्वेता जी..." तभी कहीं से एक आवाज आई।
मैं चौंक गया। यहाँ तो दो दो है ... पर दो क्यूँ...? राजेश अंकल आ गये थे, उनका मोटा सा लटका हुआ लण्ड देख कर तो मैं भी हैरत में पड़ गया। राजेश अंकल तौलिये से अपना बदन पोंछ रहे थे। शायद वो स्नान करके आये थे। मम्मी ने अंगुली के इशारे से उन्हें अपनी तरफ़ बुलाया। उनका लण्ड सहलाया और उसे मुख में डाल लिया।
"बहुत बड़ी रण्डी बन रही हो जानेमन श्वेता ... लण्ड चूसने का तुम्हें बहुत शौक है !"
"ये लण्ड तो मेरी जान हैं ... राजेश जी ... भले ही विनोद से पूछ लो?" मम्मी का एक हाथ विनोद के लण्ड पर ऊपर नीचे चल रहा था। विनोद भी लण्ड चूसती हुई और झुकी हुई मम्मी की गाण्ड में अपनी एक अंगुली घुसा कर अन्दर-बाहर करने लगा था।
"ऐ गाण्ड में अंगुली करने का बहुत शौक है ना तुम्हें ... लण्ड से चोद क्यों नहीं देता है रे?"
"आप थोड़ा सा और जोश में आ जाओ तो फिर गाण्ड भी चोदेंगे और चूत भी चोद डालेंगे !" विनोद उत्तेजित हो चुका था।
"श्वेता, बस अब लण्ड छोड़ो और इस स्टूल पर अपनी एक टांग रख दो। मुझे चूत चोदने दो।"
मम्मी ने विनोद की अंगुली गाण्ड से निकाल के बाहर कर दी और अपनी एक टांग उठा कर स्टूल पर रख दी। इससे मम्मी की चूत भी सामने से खुल गई और गाण्ड की गोलाईयाँ भी बहुत कुछ खुल कर लण्ड फ़ंसाने लायक हो गई थी। राजेश ने सामने से अपने हाथों को फ़ैला कर मम्मी को अपनी शरीर से चिपका लिया। मम्मी ने लण्ड पकड़ कर अपनी चूत में टिका लिया और धीरे से अंकल को अपनी ओर दबाने लगी। दोनों की सिसकारियाँ मुख से फ़ूटने लगी। मम्मी तो एकदम से राजेश अंकल से चिपट गई। लगता था कि लण्ड भीतर चूत में घुस चुका था।
तभी विनोद अंकल ने मम्मी के चूतड़ थपथपाये और एक क्रीम की ट्यूब माँ की गाण्ड में घुसेड़ दी। फिर वो क्रीम एक अंगुली से मम्मी की गाण्ड के छेद में अन्दर-बाहर करने लगे। फिर उन्होंने अपना तन्नाया हुआ लंबा लण्ड माँ की गाण्ड में टिका दिया और उनकी कमर पकड़ कर अपना लण्ड पीछे से अन्दर घुसाने लगे।
मेरा लण्ड भी बेहद सख्त हो गया था। मैंने अपना लण्ड लण्ड पैंट से बाहर निकाल लिया और उसे दबा कर सहला दिया। मुझे एक तेज शरीर में उत्तेजना की अनुभूति होने लगी। मैंने हल्के हाथ से अपनी मुठ्ठ मारनी शुरू कर दी।
उधर मैंने देखा कि मम्मी दोनों तरफ़ से चुदी जा रही थी और अपना मुख ऊपर करके दांतों से अपना होंठ चबा रही थी।
"मार दो मेरी गाण्ड ! मेरे यारों, चोद दो मुझे ... कुतिया की तरह से चोदो ... उफ़्फ़्फ़्फ़ आह्ह्ह्ह्ह !"
मम्मी की गाण्ड सटासट चुद रही थी। राजेश अंकल भी जोर जोर से लण्ड मारने की कोशिश कर रहे थे। माँ तो जैसे दो दो लण्ड पाकर मस्त हुई जा रही थी। मम्मी की गाण्ड टाईट लगती थी सो विनोद अंकल जल्दी ही झड़ गये। उनका लण्ड सिकुड़ कर बाहर आ चुका था।
अब मम्मी ने राजेश अंकल को बिस्तर पर धकेला और खुद ऊपर चढ़ गई। ओह मेरी मम्मी की सुन्दर गाण्ड चिर कर कितनी मस्त दिख रही थी। उनके दोनों चिकने गाण्ड के गोले खुले हुये बहुत ही आकर्षक लग रहे थे। मुझे लगा कि काश मुझे भी ऐसी कोई मिल जाती ! मेरा लण्ड मुठ्ठी मारने से बहुत फ़ूल चुका था, बहुत कड़कने लगा था।
विनोद अंकल मम्मी की गाण्ड में क्रीम की मालिश किये जा रहे थे। बार उनकी गाण्ड में अपनी अंगुली अन्दर-बाहर करने लगे थे।
तभी मम्मी जोर जोर से आनन्द के मारे कुछ कुछ बकने लगी थी। उसके लण्ड पर जोर जोर से अपनी चूत पटकने लगी थी। नीचे से राजेश भी सिसकारियाँ ले रहा था। फिर मम्मी स्वयं ही नीचे आ गई और राजेश को अपने ऊपर खींच लिया। शायद नीचे दब कर चुदने में ही उन्हें आनन्द आता था। राजेश अंकल मम्मी पर चढ़ गये। मम्मी ने अपनी दोनों टांगे बेशर्मी से ऊपर उठा कर दायें-बायें फ़ैला रखी थी। उनकी मस्त चूत में लण्ड आर पार उतरता हुआ स्पष्ट नजर आ रहा था।
मैंने भी अपना हाथ लण्ड पर और जोर से कस लिया और रगड़ के हाथ चलाने लगा। मुझे लण्ड की रगड़ के कारण मस्ती आ रही थी। माँ के बारे में मेरे विचार बदल चुके थे।
विनोद अंकल तो अब राजेश के आण्डों यानि गोलियों से खेलने लगे थे। वो उन्हें हल्के हल्के सहला रहे थे और उन्हें मुँह में लेकर चूस और चाट रहे थे। माँ नीचे से जोर जोर से उछल उछल कर लण्ड ले रही थी।
तभी मम्मी ने एक मस्ती भरी चीख मारी और झड़ने लगी। राजेश अभी भी मम्मी की चूत में जोर जोर से झटके मार के चोद रहा था। माँ ने उसे अब रोक दिया।
"अब बस, चूत में चोट लग रही है।" माँ ने कसमसाते हुये कहा।
राजेश ने मन मार कर लण्ड धीरे से बाहर खींच लिया। तभी विनोद अंकल मुस्कराते हुये आगे बढ़े और राजेश का लण्ड पीछे से आ कर थाम लिया और उसकी मुठ्ठ मारने लगा। विनोद राजेश से चिपकता जा रहा था। इतना कि उसने राजेश का मुँह मोड़ कर उसके होंठ भी चूसने लगा। तभी राजेश का जिस्म लहराया और उसका वीर्य निकल पड़ा। मम्मी इसके लिये पूरी तरह से तैयार थी। लपक कर राजेश अंकल का लौड़ा अपने मुख में भर लिया। और गट-गट कर उसका सारा गर्म-गर्म वीर्य गटकने लगी।
मैंने भी अपने सुपाड़े को देखा जो कि बेहद फ़ूल कर लाल सुर्ख हो चुका था। उसे दबाते ही मेरा वीर्य भी जोर से निकल पड़ा। मैंने धीरे धीरे लण्ड मसल पर पिचकारियों का दौर समाप्त किया और अन्तिम बून्द तक लण्ड से निचोड़ डाली। फिर पास पड़े कपड़े से लण्ड पोंछ कर अपना बैग लेकर घर से बाहर निकल आया।
भला और क्या करता भी क्या। मम्मी मुझे वहाँ पाकर शर्मसार हो जाती और शायद उन्हें आत्मग्लानि भी होती। इस अशोभनीय स्थिति से बचने के लिये मैं चुप से घर से बाहर आ गया। बैग मेरे साथ था।
समय देखा तो रात के लगभग दस बज रहे थे। सामने की एक चाय वाले की दुकान बन्द होने को थी।
मैंने उसे जाकर कहा- भैये... एक चाय पिलाओगे क्या...?
"आ जाओ, अभी बना देता हूँ...!" मेरे चाय पीने के दौरान मैंने देखा विनोद अंकल और राजेश अंकल दोनों ही मोटर साईकल पर निकल गये थे। मैंने अपना बैग उठाया और चाय वाले को पैसे देकर घर की ओर बढ़ चला।
माँ इस बात से बेखबर थी कि उनकी मस्त चुदाई का जीवंत कार्यक्रम मैं देख चुका हूँ। मैंने उन्हें इस बात का आगे भी कभी अहसास तक नहीं होने दिया।
शाम ढल चुकी थी। गाड़ी कानपुर रेलवे स्टेशन पर आ गई थी। मैंने बाहर आ कर जल्दी से एक रिक्शा किया और घर की तरफ़ बढ़ चला।
घर पहुँचते ही मैंने देखा कि घर के अहाते में मोटर साईकिल खड़ी हुई थी। मैंने अपना बैग वही वराण्डे में रखा और धीरे से दरवाजा को धक्का दे दिया। दरवाजा बिना किसी आवाज के खुल गया। मैंने अपना बैग उठाया और अन्दर आ गया। अन्दर मम्मी और एक अंकल के बातें करने की और खिलखिला कर हंसने की आवाज आई। बेडरूम अन्दर से बन्द था। घर में कोई नहीं था इसलिये अन्दर की खिड़की आधी खुली हुई थी क्योंकि इस समय हमारे घर कोई भी नहीं आता जाता था। बाहर अन्धेरा छा चुका था। मैं जैसे ही रसोई की तरफ़ बढा कि मेरी नजर अचानक ही खिड़की की तरफ़ घूम गई।
मेरी आँखें खुली की खुली रह गई। अंकल मेरी माँ के साथ बद्तमीजी कर रहे थे और माँ आनन्द से खिलखिला कर हंस रही थी। वो विनोद अंकल ही थे, जो मम्मी के शरीर को सहला सहला कर मस्ती कर रहे थे। मेरी माँ भी जवान थी। मात्र 38-39 वर्ष की थी वो। अंकल कभी तो मम्मी की कमर में गुदगुदी करते तो कभी उनके चूतड़ों पर चुटकियाँ भर रहे थे। मेरे पैर जैसे जड़वत से हो गये थे। मेरे शरीर पर चीटियाँ जैसी रेंगने का आभास होने लगा था।
अचानक विनोद अंकल ने मम्मी की कमर दबा कर उन्हें अपने से चिपका लिया और उनका चेहरा मम्मी के चेहरे की तरफ़ बढने लगा।
मैंने मन ही मन में उन्हें गालियाँ दी- साले भेन के लौड़े, तेरी तो माँ चोद दूंगा मै, माँ को हाथ लगाता है?
पर तभी मेरे होश उड़ गये, मम्मी ने तो गजब ही कर डाला। अंकल का लण्ड पैंट से निकाल कर उसे ऊपर-नीचे करने लगी।
मैं तो यह सब देख कर पानी-पानी हो गया। मेरा सर शर्म से झुक गया।
तो मम्मी ही ऐसा करने लगी थी फिर इसमें अंकल का क्या दोष?
मैं खिड़की के थोड़ा और नजदीक आ गया। अब सब कुछ साफ़ साफ़ दिखने लगा था। उनकी वासना से भरपूर वार्ता भी स्पष्ट सुनाई दे रही थी।
"आज लण्ड कैसे खाओगी श्वेता?" वो मम्मी को खड़ी करके उनके कसे हुए गाण्ड के गोले दबा रहा था।
माँ सिसक उठी थी- पहले अपना गोरा गोरा मस्त लण्ड तो चूसने दो ... साला कैसा मस्त है !
"तो उतार दो मेरी पैंट और निकाल लो बाहर अपना प्यारा लौड़ा !
मम्मी ने अंकल को खड़ा करके उनकी पैंट का बटन खोलने लगी। ऊपर से वो लण्ड के उभार को भी दबाती जा रही थी। फिर जिप खोल दी और पैंट उतारने लगी। अंकल ने भी इस कार्य में मम्मी की सहायता की।
अब अंकल एक वी-शेप की कसी अन्डरवीयर में खड़े थे। उनका लण्ड का स्पष्ट मोटा सा उभार दिखाई दे रहा था। मम्मी बार बार उसके लण्ड को ऊपर से ही दबाती जा रही थी और उनके कसे अण्डरवीयर को नीचे सरकाने की कोशिश कर रही थी।
फिर वो पूरे नंगे हो गये थे। मैंने तो एक बार नजरें घुमा ली थी पर फिर उन्हें यह सब करते देखने इच्छा मन में बलवती हो उठी थी। फिर मुझे मेरी गलती का आभास हुआ। पापा तो कनाडा जा चुके थे। मम्मी की शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति अब कैसे होती। कोई तो प्यास बुझाने वाला होना चाहिए ना। वो भी तो आखिर एक इन्सान ही हैं। फिर यह तो एक बिल्कुल व्यक्तिगत मामला था, मुझे इसमें बुरा नहीं मानना चाहिए।
मेरे बदन में भी अब एक वासना की लहर उठने लगी थी। अंकल का लण्ड खासा मोटा और लम्बा था। मम्मी ने उसे दबाया और उसे लम्बाई में दूध दुहने जैसा करने लगी।
अंकल बोल ही उठे- ऐसे दुहोगी तो दूध निकल ही आयेगा।
माँ जोर से हंस पड़ी।
"मस्त लण्ड का जायका तो लेना ही पड़ता है ना... अरे वो राजेश जी अब तक क्या कर रहे हैं...?"
"मैं हाजिर हूँ श्वेता जी..." तभी कहीं से एक आवाज आई।
मैं चौंक गया। यहाँ तो दो दो है ... पर दो क्यूँ...? राजेश अंकल आ गये थे, उनका मोटा सा लटका हुआ लण्ड देख कर तो मैं भी हैरत में पड़ गया। राजेश अंकल तौलिये से अपना बदन पोंछ रहे थे। शायद वो स्नान करके आये थे। मम्मी ने अंगुली के इशारे से उन्हें अपनी तरफ़ बुलाया। उनका लण्ड सहलाया और उसे मुख में डाल लिया।
"बहुत बड़ी रण्डी बन रही हो जानेमन श्वेता ... लण्ड चूसने का तुम्हें बहुत शौक है !"
"ये लण्ड तो मेरी जान हैं ... राजेश जी ... भले ही विनोद से पूछ लो?" मम्मी का एक हाथ विनोद के लण्ड पर ऊपर नीचे चल रहा था। विनोद भी लण्ड चूसती हुई और झुकी हुई मम्मी की गाण्ड में अपनी एक अंगुली घुसा कर अन्दर-बाहर करने लगा था।
"ऐ गाण्ड में अंगुली करने का बहुत शौक है ना तुम्हें ... लण्ड से चोद क्यों नहीं देता है रे?"
"आप थोड़ा सा और जोश में आ जाओ तो फिर गाण्ड भी चोदेंगे और चूत भी चोद डालेंगे !" विनोद उत्तेजित हो चुका था।
"श्वेता, बस अब लण्ड छोड़ो और इस स्टूल पर अपनी एक टांग रख दो। मुझे चूत चोदने दो।"
मम्मी ने विनोद की अंगुली गाण्ड से निकाल के बाहर कर दी और अपनी एक टांग उठा कर स्टूल पर रख दी। इससे मम्मी की चूत भी सामने से खुल गई और गाण्ड की गोलाईयाँ भी बहुत कुछ खुल कर लण्ड फ़ंसाने लायक हो गई थी। राजेश ने सामने से अपने हाथों को फ़ैला कर मम्मी को अपनी शरीर से चिपका लिया। मम्मी ने लण्ड पकड़ कर अपनी चूत में टिका लिया और धीरे से अंकल को अपनी ओर दबाने लगी। दोनों की सिसकारियाँ मुख से फ़ूटने लगी। मम्मी तो एकदम से राजेश अंकल से चिपट गई। लगता था कि लण्ड भीतर चूत में घुस चुका था।
तभी विनोद अंकल ने मम्मी के चूतड़ थपथपाये और एक क्रीम की ट्यूब माँ की गाण्ड में घुसेड़ दी। फिर वो क्रीम एक अंगुली से मम्मी की गाण्ड के छेद में अन्दर-बाहर करने लगे। फिर उन्होंने अपना तन्नाया हुआ लंबा लण्ड माँ की गाण्ड में टिका दिया और उनकी कमर पकड़ कर अपना लण्ड पीछे से अन्दर घुसाने लगे।
मेरा लण्ड भी बेहद सख्त हो गया था। मैंने अपना लण्ड लण्ड पैंट से बाहर निकाल लिया और उसे दबा कर सहला दिया। मुझे एक तेज शरीर में उत्तेजना की अनुभूति होने लगी। मैंने हल्के हाथ से अपनी मुठ्ठ मारनी शुरू कर दी।
उधर मैंने देखा कि मम्मी दोनों तरफ़ से चुदी जा रही थी और अपना मुख ऊपर करके दांतों से अपना होंठ चबा रही थी।
"मार दो मेरी गाण्ड ! मेरे यारों, चोद दो मुझे ... कुतिया की तरह से चोदो ... उफ़्फ़्फ़्फ़ आह्ह्ह्ह्ह !"
मम्मी की गाण्ड सटासट चुद रही थी। राजेश अंकल भी जोर जोर से लण्ड मारने की कोशिश कर रहे थे। माँ तो जैसे दो दो लण्ड पाकर मस्त हुई जा रही थी। मम्मी की गाण्ड टाईट लगती थी सो विनोद अंकल जल्दी ही झड़ गये। उनका लण्ड सिकुड़ कर बाहर आ चुका था।
अब मम्मी ने राजेश अंकल को बिस्तर पर धकेला और खुद ऊपर चढ़ गई। ओह मेरी मम्मी की सुन्दर गाण्ड चिर कर कितनी मस्त दिख रही थी। उनके दोनों चिकने गाण्ड के गोले खुले हुये बहुत ही आकर्षक लग रहे थे। मुझे लगा कि काश मुझे भी ऐसी कोई मिल जाती ! मेरा लण्ड मुठ्ठी मारने से बहुत फ़ूल चुका था, बहुत कड़कने लगा था।
विनोद अंकल मम्मी की गाण्ड में क्रीम की मालिश किये जा रहे थे। बार उनकी गाण्ड में अपनी अंगुली अन्दर-बाहर करने लगे थे।
तभी मम्मी जोर जोर से आनन्द के मारे कुछ कुछ बकने लगी थी। उसके लण्ड पर जोर जोर से अपनी चूत पटकने लगी थी। नीचे से राजेश भी सिसकारियाँ ले रहा था। फिर मम्मी स्वयं ही नीचे आ गई और राजेश को अपने ऊपर खींच लिया। शायद नीचे दब कर चुदने में ही उन्हें आनन्द आता था। राजेश अंकल मम्मी पर चढ़ गये। मम्मी ने अपनी दोनों टांगे बेशर्मी से ऊपर उठा कर दायें-बायें फ़ैला रखी थी। उनकी मस्त चूत में लण्ड आर पार उतरता हुआ स्पष्ट नजर आ रहा था।
मैंने भी अपना हाथ लण्ड पर और जोर से कस लिया और रगड़ के हाथ चलाने लगा। मुझे लण्ड की रगड़ के कारण मस्ती आ रही थी। माँ के बारे में मेरे विचार बदल चुके थे।
विनोद अंकल तो अब राजेश के आण्डों यानि गोलियों से खेलने लगे थे। वो उन्हें हल्के हल्के सहला रहे थे और उन्हें मुँह में लेकर चूस और चाट रहे थे। माँ नीचे से जोर जोर से उछल उछल कर लण्ड ले रही थी।
तभी मम्मी ने एक मस्ती भरी चीख मारी और झड़ने लगी। राजेश अभी भी मम्मी की चूत में जोर जोर से झटके मार के चोद रहा था। माँ ने उसे अब रोक दिया।
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राजेश ने मन मार कर लण्ड धीरे से बाहर खींच लिया। तभी विनोद अंकल मुस्कराते हुये आगे बढ़े और राजेश का लण्ड पीछे से आ कर थाम लिया और उसकी मुठ्ठ मारने लगा। विनोद राजेश से चिपकता जा रहा था। इतना कि उसने राजेश का मुँह मोड़ कर उसके होंठ भी चूसने लगा। तभी राजेश का जिस्म लहराया और उसका वीर्य निकल पड़ा। मम्मी इसके लिये पूरी तरह से तैयार थी। लपक कर राजेश अंकल का लौड़ा अपने मुख में भर लिया। और गट-गट कर उसका सारा गर्म-गर्म वीर्य गटकने लगी।
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